रबर और कॉयर का मूल्यवर्धन करना चाहिए: कुप्पुरमू
तिरुवनंतपुरम, शुक्रवार, 17 मार्च 2023। कॉयर बोर्ड के अध्यक्ष कुप्पुरम ने कहा कि भारत को रबर और कॉयर जैसी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध क्षेत्रीय संसाधनों के मूल्यवर्धन को बढ़ावा देना चाहिए जिससे ऐसे उत्पादों के बढ़ते घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार का लाभ अर्जित किया जा सके। कुप्पारामु ने सीएसआईआर- नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इंटरडिसिप्लिनरी साइंस एवं टेक्नोलॉजी (एनआईआईएसटी) में 'क्षेत्रीय सामग्री- रबर और कॉयर प्रौद्योगिकियां' विषय पर एक सत्र का उद्घाटन करते हुए कहा कि कॉयर नारियल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पाद है। भारत कॉयर उत्पाद बनाने में उपयोग होने वाले नारियल की भूसी जैसे कच्चे माल का निर्यात करता है, लेकिन कॉयर से मूल्यवर्धित उत्पादों को बढ़ावा देने में पीछे है।
रक्षा नामक यह सत्र, पूरे देश में सीएसआईआर की घटक प्रयोगशालाओं की उपलब्धियों का प्रदर्शन करने के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए ''वन वीक वन लैब'' कार्यक्रम का एक प्रमुख हिस्सा है। कॉयर सेक्टर की क्षमता पर श्री कुप्पामु ने कहा कि यह गर्मी में कमी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और कॉयर जैसे प्राकृतिक फाइबर ग्लोबल वार्मिंग के प्राथमिक समाधान के रूप में कार्य करते हैं। उन्होने कहा कि कॉयर, प्लास्टिक का सबसे अच्छा बायोडिग्रेडेबल विकल्प है और यह प्लास्टिक के उपयोग को नियंत्रित करने में देश की कोशिशों का समर्थन करता है। इसलिए सीएसआईआर-एनआईआईएसटी जैसे अनुसंधान संस्थानों को ऐसी प्रौद्योगिकियां विकसित करने की दिशा में काम करना चाहिए जो इस क्षेत्र को मजबूती प्रदान करें।
रबर बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सावर धनानिया ने एमएसएमई और स्टार्टअप को ज्यादा प्रोत्साहन देकर रबर के मूल्यवर्धन को बढ़ावा देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि उत्पादकों के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करने के अलावा, रबर की खेती, उत्पादन, बाजार और आपूर्ति श्रृंखला का लाभ उत्पाद विकास के लिए होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों में रबर युक्त कॉयर उत्पाद के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास किया जाना चाहिए।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए सीएसआईआर-एनआईआईएसटी, तिरुवनंतपुरम के निदेशक डॉ. सी आनंदरामकृष्णन ने कहा कि पर्यावरण अनुकूल तकनीकों का विकास करके सीएसआईआर-एनआईआईएसटी रबर और कॉयर जैसे क्षेत्रीय संसाधनों के मूल्यवर्धन को बढ़ावा देने की परिकल्पना करता है। कॉयर पर एक सत्र की अध्यक्षता करते हुए, प्रोफेसर आर ज्ञानमूर्ति, आईआईटी मद्रास ने कहा कि चूंकि भारत में आवश्यक रबर और कॉयर उत्पादों का केवल 10 प्रतिशत उत्पादन होता है, इसलिए घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को इन क्षेत्रीय संसाधनों के मूल्यवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
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