फिल्म ‘120 बहादुर’ के सीबीएफसी प्रमाणपत्र को चुनौती देने वाली याचिका पर 26 नवंबर को सुनवाई
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को फरहान अख्तर अभिनीत फिल्म ‘120 बहादुर’ को दिए गए सीबीएफसी प्रमाणपत्र को चुनौती देने वाली एक याचिका को 26 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। याचिका में फिल्म का नाम बदलने की मांग करते हुए आरोप लगाया गया है कि फिल्म ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ करती है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई अगले सप्ताह के लिए स्थगित कर दी गई क्योंकि पीठ आज नहीं बैठी।
यह याचिका संयुक्त अहीर रेजिमेंट मोर्चा, एक धर्मार्थ ट्रस्ट, उसके ट्रस्टी और रेजांग ला की लड़ाई में शहीद हुए कई सैनिकों के परिजनों ने दायर की है। हालांकि, जब मामले की सुनवाई शुरू हुई, तो याचिकाकर्ताओं की ओर से कोई भी उपस्थित नहीं हुआ। फिल्म में मेजर शैतान सिंह भाटी की कहानी दिखाई गई है, जिन्हें 1962 में रेजांग ला की लड़ाई में बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। यह फिल्म 21 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है।
याचिका में कहा गया है कि लद्दाख के चुशुल सेक्टर में 18,000 फुट की ऊंचाई पर लड़ी गई इस लड़ाई को रक्षा मंत्रालय के इतिहास प्रभाग में सामूहिक वीरता के प्रतीक के रूप में वर्णित किया गया है। इसमें 120 में से 114 सैनिक शहीद हो गए थे। मुख्य रूप से रेवाड़ी और आसपास के क्षेत्रों के (113) अहीर (यादव) सैनिकों की कंपनी ने अद्वितीय साहस और कर्तव्य के प्रति समर्पण के साथ चुशुल हवाई क्षेत्र की पहली रक्षा पंक्ति - रेजांग ला दर्रे की रक्षा की।
याचिकाकर्ताओं ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा जारी प्रमाणपत्र और फिल्म की आसन्न रिलीज को चुनौती दी है। उनका आरोप है कि फिल्म युद्ध को दर्शाने का दावा तो करती है, लेकिन मेजर शैतान सिंह को काल्पनिक नाम ‘भाटी’ के तहत एकमात्र नायक के रूप में महिमामंडित करके ऐतिहासिक सच्चाई को विकृत करती है। उन्होंने दावा किया कि यह फिल्म मेजर शैतान सिंह के साथ मिलकर लड़ाई में शामिल होने और शहीद होने वाले अहीर सैनिकों की सामूहिक पहचान, रेजिमेंट के गौरव और योगदान को मिटा देती है।
याचिका में कहा गया है कि यह चित्रण सिनेमेटोग्राफ और प्रमाणन दिशानिर्देशों के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, जो ‘‘इतिहास के विकृत दृष्टिकोण’’ को प्रस्तुत करने वाली फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगाते हैं। इसमें कहा गया है कि यह भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 का भी उल्लंघन है, जिसके तहत मृतक व्यक्तियों के विरुद्ध उनके रिश्तेदारों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले आरोप आपराधिक होते हैं। ट्रस्ट ने अधिकारियों से आवेदन किया है कि फिल्म प्रमाणन की समीक्षा की जाए और फिल्म का नाम नहीं बदले जाने तक इसकी रिलीज पर रोक लगाई जाए। उसने युद्ध में अहीर समुदाय के योगदान को स्वीकार करते हुए एक ‘अस्वीकरण’ भी शामिल करने की मांग की है।
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