कंप्यूटर और एआई की पढ़ाई से मानवता नहीं आ सकती: न्यायमूर्ति मनोज मिश्र

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प्रयागराज, शनिवार, 26 जुलाई 2025। उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति मनोज मिश्र ने शनिवार को यहां कहा कि कंप्यूटर, एआई और प्रौद्योगिकी की पढ़ाई से विद्यार्थियों में मानवता नहीं आ सकती। उन्होंने कहा, “हमें बेहतरीन इंसान बनाने के लिए कला, सामाजिक विज्ञान और साहित्य के शिक्षण पर भी जोर देना होगा।” न्यायमूर्ति मिश्र ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में चार विशिष्ट पूर्व छात्र और वर्तमान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के सम्मान समारोह में कहा, “विश्वविद्यालय में सभी विषयों को समझकर ही विद्यार्थियों का संपूर्ण विकास होता है। इस विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान मुझे जो सीख मिली, वह पूरे जीवन काम आई है।”

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विद्यार्थी की सफलता में शिक्षक के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा, “विश्वविद्यालय में शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच बने संबंध ही विद्यार्थियों को सफल बनाते हैं।” उन्होंने कहा, “विद्यार्थी, शिक्षकों की डांट से ना डरें क्योंकि शिक्षकों की डांट भी जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। विद्यार्थी विश्वविद्यालय में अच्छे मित्र जरूर बनाएं क्योंकि विद्यार्थी जीवन की दोस्ती जीवनभर साथ निभाती है। आपकी गलतियों को बताने वाले मित्र से दूरी ना बनाएं। आपकी कमियां बताने वाला ही आपका वास्तविक शुभचिंतक है।” न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने विधि के विद्यार्थियों को सलाह दी कि कानून केवल किताबों में नहीं बल्कि आपके जीवन में है।

उन्होंने कहा, “समाज को समझकर ही कानून को सही तरीके से समझा जा सकता है। कानून के क्षेत्र में शार्टकट से मिली सफलता ज्यादा लंबी नहीं टिकती।” न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने कार्यक्रम में कहा कि देश में विविधता में एकता के लिए दूसरे को समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि त्वरित निर्णय लेने के बजाय दूसरे के प्रति विनम्र भाव रखते हुए सहनशील बनने की जरूरत है क्योंकि सहिष्णुता ही भारत की नींव है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने चिंता जताई कि वर्तमान में विद्यार्थियों के अंदर से बाहर की दुनिया खो गई है।

उन्होंने कहा कि दूसरे विश्वविद्यालयों और समाज में हो रहे घटनाक्रमों से आज के विद्यार्थी स्वयं को अलग कर रहे हैं। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने कहा कि विद्यार्थियों को समाज में हो रहे घटनाक्रम पर भी नजर रखनी चाहिए। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान के अनुभवों को याद करते हुए कहा, “कैंपस का माहौल और यहां होने वाली चर्चाओं से मेरा जुड़ाव कला और साहित्य से हुआ। छात्रावासों में कविताएं लिखने और समझने का मौका मिला।”

उन्होंने अपने शिक्षक डॉ. बीबी सक्सेना के साथ बिताएं लम्हों को याद किया। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने कहा, “मेरी जड़े विश्वविद्यालय और यहां के बरगद के पेड़ से जुड़ी हैं। गांधी पीस फाउंडेशन के माध्यम से गांधी को समझने का मौका मिला जो आज भी हमें प्रेरणा देता रहता है।” विश्वविद्यालय के ईश्वर टोपा भवन सभागार में शनिवार को आयोजित विशिष्ट पूर्व छात्र सम्मान समारोह की अध्यक्षता कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव ने की। ‘यूनिवर्सिटी ऑफ इलाहाबाद एलुमनाई एसोसिएशन’ की ओर से इन न्यायाधीशों को सम्मानित किया गया।

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