बिलकिस बानो: दोषियों के आत्मसमर्पण का समय बढ़ाने की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई

img

नई दिल्ली, गुरुवार, 18 जनवरी 2024। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसके परिवार के कई लोगों की हत्या मामले में तीन दोषियों को आत्मसमर्पण करने के लिए समय बढ़ाने की उसकी याचिका पर 19 जनवरी को सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की अगुवाई वाली पीठ ने उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह इस मामले की सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां सहित एक पीठ गठित करने के लिए मुख्य न्यायाधीश से निर्देश ले। शीर्ष अदालत ने अपना यह आदेश तब पारित किया जब एक वकील ने समय बढ़ाने के लिए तीन दोषियों की ओर से दायर याचिकाओं का उल्लेख किया। वकील ने कहा कि अन्य दोषी भी दिन के दौरान समय बढ़ाने के लिए इसी तरह की याचिका दायर करेंगे।

शीर्ष अदालत इस मामले के 11 दोषियों को गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत दी गई सजा में छूट को 08 जनवरी को अवैध करार देते हुए उसे रद्द कर दिया था। इसके साथ ही, अदालत ने उन्हें जेल प्रशासन के समक्ष दो सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया था, जिसकी अवधि 21 जनवरी को समाप्त होने वाली है। याचिका के मुताबिक दोषी रमेश रूपाभाई चंदना ने पारिवारिक दायित्व निभाने के लिए छह सप्ताह की मोहलत मांगी, जबकि दोषी मितेश चिमनलाल भट ने सर्दियों की उपज की कटाई के लिए छह सप्ताह का और समय देने की गुहार लगाई। एक अन्य दोषी ने अपने बूढ़े और बीमार पिता की देखभाल के लिए छह सप्ताह का अतिरिक्त समय की विनती की है।

उच्चतम न्यायालय 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या मामले में अजीवन कारावास की सजा काट रहे 11 दोषियों की 2022 में समयपूर्व रिहाई के गुजरात सरकार के फैसले को अवैध करार देते हुए आठ जनवरी को रद्द कर दिया था। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि इस मामले में सजामाफी के मुद्दे पर फैसला लेना गुजरात सरकार के अधिकारक्षेत्र में नहीं आता, इसलिए सजामाफी देने का सरकार का फैसला रद्द किया जाता है।

पीठ ने कहा था कि मुकदमे की सुनवाई महाराष्ट्र की अदालत में हुई थी, इसलिए सजामाफी का फैसला लेना वहां की सरकार के अधिकारक्षेत्र में आता है। गुजरात सरकार की 1992 की माफी नीति के तहत बाकाभाई वोहानिया, जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़वाडिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना को 15 अगस्त 2022 को गोधरा उप कारागर से रिहा कर दिया गया था। रिहा करने के फैसले को बिलकिस और अन्य की ओर से अदालत में चुनौती दी गई थी।

शीर्ष अदालत ने बिलकिस की याचिका और अन्य की याचिकाओं सुनवाई पूरी होने के बाद 12 अक्टूबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा था कि अपराध भयानक है, लेकिन वह भावनाओं में नहीं आएगी। केवल कानून के आधार पर इस मामले में फैसला करेगी। अदालत ने तब यह भी कहा था कि गुजरात सरकार इस मामले में अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करेगी, क्योंकि वहां अपराध हुआ था। बिलकिस ने नवंबर 2022 में अदालत का दरवाजा खटखटाया। अपनी याचिका में उन्होंने दलील दी थी कि यह 'सबसे भयानक अपराधों में से एक था।' एक विशेष समुदाय के प्रति नफरत से प्रेरित अत्यधिक अमानवीय हिंसा और क्रूरता थी।

Similar Post

LIFESTYLE

AUTOMOBILES

Recent Articles

Facebook Like

Subscribe

FLICKER IMAGES

Advertisement