आखिर क्यों भगवान गणेश को चढ़ाई जाती है दूर्वा? जानिए कथा

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सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य शुरु करने से पहले प्रभु श्री गणेश की पूजा का विधान है। पौराणिक मान्यता है कि प्रभु श्री गणेश की पूजा करने से सारी विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं। वही इस बार गणेश चतुर्थी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाएगी। अंग्रेजी महीने के मुताबिक, यह सितंबर माह की 19 तारीख को पड़ रही है। 10 दिन चलने वाले इस पर्व की धूम पूरे भारत में देखने को मिलेगी। इस के चलते भक्त गणपति की निरंतर 10 दिन तक पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना करेंगे।

पंचांग के अनुसार, 19 सितंबर को स्वाति नक्षत्र दोपहर 01 बजकर 48 तक रहेगा। तत्पश्चात, विशाखा नक्षत्र रात तक रहेगा। ऐसे में गणेश चतुर्थी के दिन 2 शुभ योग बनेंगे। इसके अतिरिक्त इस दिन वैधृति योग भी रहेगा जो बेहद ही शुभ माना गया है। वही प्रभु श्री गणेश की पूजा में मोदक का भोग और दूर्वा (Durva) चढ़ाने का विशेष रूप से महत्व होता है। दूर्वा चढ़ाने से सभी प्रकार के सुख और संपदा में वृद्धि होती है। बिना दूर्वा के प्रभु श्री गणेश की पूजा अधूरी मानी जाती है। आइए आपको बताते हैं आखिर क्यों प्रभु श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाया जाता है? 

क्या है कथा?
एक पौराणिक कथा के मुताबिक, प्राचीनकाल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था, उसके कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। अनलासुर एक ऐसा दैत्य था, जो मुनि-ऋषियों एवं साधारण मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था। इस दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर इंद्र समेत सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि भगवान शिव से प्रार्थना करने जा पहुंचे तथा सभी ने भगवान शिव से यह प्रार्थना की कि वे अनलासुर के आतंक का खात्मा करें। तब भगवान शिव ने समस्त देवी-देवताओं तथा मुनि-ऋषियों की प्रार्थना सुनकर उनसे कहा कि दैत्य अनलासुर का नाश सिर्फ श्री गणेश ही कर सकते हैं। फिर सबकी प्रार्थना पर श्री गणेश ने अनलासुर को निगल लिया, तब उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। इस समस्या से निपटने के लिए कई तरह के उपाय करने के बाद भी जब गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हुई, तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर श्री गणेश को खाने को दीं। यह दूर्वा श्री गणेशजी ने ग्रहण की, तब कहीं जाकर उनके पेट की जलन शांत हुई। ऐसा कहा जाता है कि श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई।

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