त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने हत्या के छह आरोपियों को जमानत दिए जाने की जांच करने का निर्देश दिया

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अगरतला, गुरुवार, 07 अगस्त 2025। त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने न्यायिक रजिस्टार को यह जांच करने का निर्देश दिया है कि बेलोनिया के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय ने हत्या के एक मामले के छह आरोपियों को कैसे जमानत दे दी, जबकि उनकी जमानत याचिका पहले ही उच्च न्यायालय खारिज कर चुका था। एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी। उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विश्वजीत पलित ने हत्या के छह आरोपियों को नोटिस जारी करते हुए उनसे यह स्पष्टीकरण मांगा है कि उनकी जमानत क्यों न रद्द कर दी जाए।

दक्षिण त्रिपुरा जिला परिषद चुनाव में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के उम्मीदवार बादल शील पर पिछले साल 12 जुलाई को छत्ताखोला इलाके में कुछ लोगों के एक समूह ने बर्बर हमला किया था। उनकी अगले दिन अगरतला के जीबीपी अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गयी थी। एक प्राथमिकी के आधार पर पुलिस ने माकपा उम्मीदवार की हत्या में कथित संलिप्तता को लेकर सात लोगों को गिरफ्तार किया था। जांच पूरी करने के बाद, जांच अधिकारी ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय के समक्ष आरोप-पत्र दाखिल किया, जिसमें गिरफ्तार सातों आरोपियों को हत्या का आरोपी ठहराया गया। अधिवक्ता पुरुषोत्तम रॉय बर्मन ने कहा, ‘‘चूंकि आरोपपत्र दाखिल हो चुका था, इसलिए सातों आरोपियों ने निचली अदालत में जमानत याचिकाएं दायर कीं। लेकिन मामले की गंभीरता और आरोपियों के खिलाफ मौजूद साक्ष्यों को देखते हुए, अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय ने जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं।’’

सात आरोपियों में से छह ने निचली अदालत द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज किये जाने के फैसले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय ने भी आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत होने का हवाला देते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी। इसके बाद इन छह आरोपियों ने फिर अतिरिक्त जिला एवं सत्र अदालत में जमानत देने की गुहार लगायी जबकि मुकदमे की सुनवाई शुरू हो गयी थी। बर्मन ने कहा, ‘‘निचली अदालत ने 25 जुलाई को छह आरोपियों को जमानत दे दी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमने बुधवार को न्यायमूर्ति पलित की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष यह मुद्दा उठाया और बताया कि अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन करते हुए छह आरोपियों को जमानत दे दी। गंभीर आरोपों का सामना कर रहे व्यक्तियों को निचली अदालत द्वारा जमानत देना न्यायिक व्यवस्था के अनुशासन के विरुद्ध है।’’ बर्मन ने बताया कि न्यायमूर्ति पलित ने दलीलें सुनने के बाद न्यायिक रजिस्ट्रार को मामले की जांच करने को कहा और छह आरोपियों को भी नोटिस जारी कर उनसे यह पूछा कि उनकी जमानत क्यों न रद्द कर दी जाए।

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