जानिए कैसे हुई थी पितृपक्ष की शुरुआत

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पितृपक्ष एक ऐसा समय होता है जब लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं। यह अवधि हर साल भाद्रपद शुक्ल की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलती है, यानी 15 दिनों तक। इस दौरान लोग श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्मकांड करते हैं, ताकि उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिले। लेकिन पितृपक्ष की शुरुआत कैसे हुई, आइये जानते हैं:

महाभारत के अनुसार, पितृपक्ष की परंपरा दानवीर कर्ण की एक गलती के कारण शुरू हुई। महाभारत के युद्ध के 17वें दिन, अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया। कर्ण की आत्मा जब यमलोक पहुंची, तो उसे स्वर्ग में स्थान मिला क्योंकि उसने जीवनभर बहुत सारे दान किए थे। लेकिन यहां उसे भोजन के रूप में केवल कीमती रत्न और आभूषण ही मिलते थे, अन्न नहीं। कर्ण ने इस बारे में देवराज इंद्र से पूछा कि उसे अन्न क्यों नहीं मिल रहा। इंद्र ने बताया कि उसने जीवन में बहुत सारे धन, स्वर्ण और आभूषण का दान किया, लेकिन कभी अन्न का दान नहीं किया। इसके अलावा, उसने अपने पूर्वजों का भी श्राद्ध नहीं किया। इसलिए, उसे स्वर्ग में अन्न का भोग नहीं मिल रहा था।

कर्ण ने कहा कि वह इस बारे में नहीं जानता था और अब वह अपने पूर्वजों के लिए क्या कर सकता है। इंद्र के कहने पर, कर्ण की आत्मा को 15 दिनों के लिए धरती पर भेजा गया। धरती पर आकर कर्ण ने इन 15 दिनों में अन्न और भोजन का दान किया। इस प्रकार, पितृपक्ष की परंपरा शुरू हुई और यही परंपरा आज भी चलती आ रही है।

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