संस्कृति, पर्यावरण, प्रकृति के संरक्षण व संवर्धन को लेकर कार्य कर रहा रावल परिवार- महंत नारायण गिरी

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जसोल, गुरुवार, 11 अप्रैल 2024। श्री राणी रूपादे जी मन्दिर पालियाधाम में चैत्र नवरात्रि पर्व पर माता के दर्शनों को लेकर श्रद्धालुओं की लम्बी कतारे लगी नजर आई। छत्तीस कौम की आस्था केंद्र पालियाधाम दिन भर श्रद्धालुओं के जयकारों से गुंजायमान रहा। जंहा सैकड़ों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने रावल श्री मल्लीनाथ जी व उनकी राणी रूपादे जी के दर्शन कर सुख समृद्धि की कामना की। चैत्र नवरात्रि पर्व शुक्ल पक्ष बीज के शुभ अवसर पर श्री रावल मल्लीनाथ जी मंदिर मालाजाल, श्री राणी रूपादे जी मंदिर पालिया एवम् श्री रावल मल्लीनाथ जी मंदिर थान मल्लीनाथ तिलवाड़ा में दिल्ली एनसीआर सन्त महामंडल अध्यक्ष व जूना अखाड़ा अंतर्राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा दूधेश्वर नाथ महादेव मंदिर गाजियाबाद श्रीमहंत नारायण गिरी, श्री राणी रूपादे मन्दिर संस्थान अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल एवं कुंवर हरिश्चन्द्रसिंह ने विधि विधान से दर्शन एवम् पूजा अर्चना की। इस दौरान महंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि पालिया धाम के दिव्य स्वरूप को निहारा है। सालों पहले यंहा राणी रूपादे ने सामाजिक समरसता की सीख दी थी।

आज रावल परिवार उनके पदचिन्हों पर चल रहा है। हमें भी उनके साथ जुडऩे की आवश्यकता है। यहां रावल मल्लीनाथ जी और राणी रूपादे जी ने जो आदर्श स्थापित किए हैं, वे हम सभी के लिए प्रेरणादायक हैं। साथ ही कहा कि रावल किशनसिंह जसोल अपनी संस्कृति, पर्यावरण, प्रकृति के संरक्षण व संवर्धन को लेकर कार्य कर रहे है। हमें रावल साहब के कार्यो में सहयोग देना चाहिए। श्री रावल मल्लीनाथ श्री राणी रूपादे संस्थान अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल ने कहा कि ये भूमि वीर योद्धाओं व महान तपस्वी संतों की है। यहां रावल मल्लीनाथजी ने 700 वर्षों पूर्व सन्तों का समागम करवाया था।

जिसमें श्री राणी रूपादे जी के गुरु श्री उगमसी भाटी, गुरु भाई मेघधारूजी, संत शासक महाराणा कुंभा व उनकी रानी (मेवाड़), बाबा रामदेव जी रामदेवरा (पोखरण), जैसल धाड़वी व उनकी रानी तोरल (गुजरात) सहित अन्य समकालीन संतो ने भाग लिया और समरसता, धर्म व सत्य के मार्ग की ज्योत जगाई थी। उन्होंने कहा कि यह मेला सन्तो के समागम का मेला था। जो कालांतर में व्यापार बढऩे के साथ पशु मेला बन कर रह गया। ओर कुछ समय से पशुओं में भी गिरावट आ गई है। साथ ही बताया कि 15 से 20 वर्ष पूर्व यंहा मेले में एक लाख से ज्यादा पशु आते थे। यंहा बड़ी संख्या में ऊंट, बेल, गाय व घोडे आते थे। परंतु आज के समय मे मेले की स्थिति चिंताजनक है। मेला खत्म होने की ओर आगे बढ़ रहा है। आज बहुत दु:ख होता है कि मेला किस ओर जा रहा है। समय रहते सरकार का ध्यान इस ओर लग जाए तो निश्चित ही आने वाले समय में इसके बड़े रूप को देख सकते है। प्रशासनिक उदासीनता के चलते लगातार मेले का ग्राफ घटता जा रहा है। साथ ही बताया कि संस्थान मेले को पुनर्जीवित करने के कार्य मे लगा हुआ है।

आज यहां संस्कृति को जीवंत रखने को लेकर लोक गायकों व कलाकारों के माध्यम से सन्तो की वाणी गाई जा रही है। लुणी नदी में बढ़ते प्रदूषण को लेकर मरु गंगा की आरती कर बचाने का कार्य किया जा रहा है। मेले में महंत गणेश पूरी महाराज वरीया के पावन सानिध्य में श्री राणी भटियाणी मंदिर द्वारा नि:शुल्क संचालित भोजनशाला का कन्या पूजन एवं श्री रावल मल्लीनाथ जी मंदिर में लापसी प्रसाद का भोग लगाकर तिलवाड़ा, थान मल्लीनाथ व बोरावास के प्रत्येक घर मे रावल मल्लीनाथजी व श्री राणी रूपादे जी के बताए सत्य मार्ग के संदेश के साथ वितरण एवं स्थानीय गैर नृत्य कलाकारों की कलाकृति के साथ समापन किया गया। तथा भोजनशाला शुभारंभ कार्यक्रम 5 अप्रैल को भी लापसी प्रसाद का भोग लगाकर इसी संदेश के साथ इन्ही तीनों ग्रामों एवं मेलार्थियों में वितरण किया गया था। भोजनशाला में मेला अवधि के दौरान प्रतिदिन हजारों मेलार्थियों एवं भक्तों ने प्रसादी का लाभ लिया। इस दौरान संस्थान सचिव सुमेरसिंह वरिया, जीवराजसिंह कोलु व विजयसिंह टापरा, भगवतसिंह थान मल्लीनाथ, पुंजराजसिंह वरिया, मांगूसिंह जागसा, गजेंद्रसिंह जसोल, उत्तमसिंह असाड़ा सहित अनन्य भक्तगण मौजूद रहे।

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