लता मंगेश्कर सिर्फ गायिका नहीं अपने आप में एक कंपोजर थी- विशाल भारद्वाज

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बॉलीवुड के जानेमाने फिल्मकार और संगीतकार विशाल भारद्वाज कहा कि स्वर कोकिला दिवंगत लता मंगेश्कर सिर्फ एक गायिका नहीं अपने आप में एक कंपोजर भी थी। 56वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (इफ्फी) में "द रिदम्स ऑफ इंडिया: फ्रॉम द हिमालयाज टू द डेक्कन" शीर्षक वाला सालाना लता मंगेशकर मेमोरियल टॉक एक जबरदस्त म्यूजिकल सफर की तरह सामने आया, जिसमें यादें, मेलोडी और क्रिएशन का जादू एक साथ बुना गया।  विशाल भारद्वाज और बी. अजनीश लोकनाथ की बातचीत और क्रिटिक सुधीर श्रीनिवास की अगुआई वाले संवाद (डायलॉग) के साथ, इस सत्र ने दर्शकों को दो खास संगीत प्रतिभाओं को अपनी रचनात्मक दुनिया खोलते हुए देखने का एक दुर्लभ मौका दिया। विशाल भारद्वाज ने 'कंतारा' थीम को "अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्म थीम में से एक" कहा, और माना कि इसने उन्हें इसके पीछे के कंपोजर को खोजने पर मजबूर कर दिया।  

अजनीश ने मुस्कुराते हुए और एक याद के साथ जवाब दिया: 'माचिस', चप्पा चप्पा, और विशाल के संगीत का अनोखा रिदमिक "स्विंग" जिसने उन्हें बचपन से बनाया था। उन्होंने खुश दर्शकों के लिए रिदम का थोड़ा सा हिस्सा गुनगुनाया भी। जब बातचीत 'पानी पानी रे' पर आई, तो माहौल पूरी तरह बदल गया।  विशाल ने बताया कि कैसे पानी की आवाज और नदी किनारे की शांति ने गाने की आत्मा को व्यक्त किया। उन्होंने लता मंगेशकर की सहज परफेक्शन को याद किया कि कैसे वह हर नोट याद रखती थीं, एक ही टेक में गाती थीं और पानी के बहाव को दिखाने के लिए धुन में समायोजन का भी सुझाव देती थीं। उन्होंने कहा, "वह सिर्फ एक गायिका नहीं थीं। वह अपने आप में एक कंपोजर भी थीं।

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