वन अधिकार कानून को कमजोर करने की साजिश कर रही है छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार: कांग्रेस

img

नई दिल्ली, बुधवार, 09 जुलाई 2025। कांग्रेस ने बुधवार को आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार संस्थागत तरीके से वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 को कमजोर करने की साजिश कर रही है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक खबर का हवाला दिया और दावा किया कि छत्तीसगढ़ की सरकार के वन विभाग ने एक पत्र जारी कर खुद को 'नोडल एजेंसी' घोषित कर लिया है, जो यह सीधे-सीधे आदिवासी समुदायों के कानूनी अधिकारों तथा लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला है।

पूर्व पर्यावरण मंत्री रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार संस्थागत तरीके से वन अधिकार अधिनियम, 2006 को कमजोर करने की साजिश कर रही है। वन अधिकार अधिनियम को आदिवासी और जंगलों में रहने वाले समुदायों के खिलाफ हुए ऐतिहासिक अन्यायों को सुधारने के उद्देश्य से लाया गया था। इस कानून के तहत ग्राम सभाओं को उनके पारंपरिक जंगलों के संरक्षण, प्रबंधन और उपयोग का अधिकार दिया गया है।’’ उन्होंने कहा कि हाल ही में छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के वन विभाग ने एक पत्र जारी कर खुद को 'नोडल एजेंसी' घोषित कर लिया और वनों के प्रबंधन के लिए अपनी कार्य योजना लागू करने की बात कही।

रमेश का कहना है, ‘‘सरकार का यह कदम उन सभी ग्राम सभाओं के अधिकारों को नजरअंदाज करता है, जिनके अधिकार वन अधिकार अधिनियम के तहत पहले ही मान्यता प्राप्त हैं। यह न केवल कानून की मूल भावना के खिलाफ है, बल्कि उन अधिकारों को पलटने की साजिश है जिन्हें समुदायों ने वर्षों के संघर्ष के बाद हासिल किया है।’’ उन्होंने दावा किया कि यह सीधे-सीधे आदिवासी समुदायों के कानूनी अधिकारों, लोकतांत्रिक ढांचे और वनों की पारिस्थितिकीय नींव पर हमला है।

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘गौर करने की बात यह है कि वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए केंद्रीय स्तर पर जनजातीय कार्य मंत्रालय को नोडल एजेंसी घोषित किया गया है। लेकिन यहां भाजपा सरकार ने वन विभाग को नोडल एजेंसी बना दिया है।’’ रमेश ने यह भी कहा, ‘‘पर्यावरणीय दृष्टि से भी यह केंद्रीकरण बेहद खतरनाक है। वनों में रहने वाले समुदाय लंबे समय से जैव विविधता के विश्वसनीय संरक्षक रहे हैं। उन्हें निर्णय प्रक्रिया से बाहर रखना पारिस्थितिकीय संतुलन और जंगलों की सुरक्षा को खतरे में डालने जैसा है।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार का यह कदम स्थानीय शासन और लोकतंत्र की भावना के भी खिलाफ है।

कांग्रेस नेता के अनुसार, ग्राम सभा, जो वन अधिकार अधिनियम के तहत एक वैधानिक इकाई है, उसे अंतिम निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है, लेकिन सरकार के इस कदम से उसकी भूमिका को सीमित कर केवल एक सलाहकार संस्था में तब्दील करने की कोशिश की जा रही है। रमेश ने दावा किया, ‘‘दरअसल, भाजपा सरकार की असली मंशा आदिवासियों को उनके जंगलों से बेदखल कर इन इलाकों को अपने चहेते उद्योगपतियों के हवाले करने की है। ‘वैज्ञानिक प्रबंधन’ और ‘वर्किंग प्लान’ जैसे दिखावटी शब्दों के पीछे असली खेल जंगलों की अवैध कटाई, बेशकीमती खनिजों की खुली लूट और संसाधनों पर उद्योगपतियों के कब्जे को वैध बनाने का है।’’

Similar Post

LIFESTYLE

AUTOMOBILES

Recent Articles

Facebook Like

Subscribe

FLICKER IMAGES

Advertisement