होली के बाद.... कहीं भाई दूज, तो कहीं जमरा बीज उत्सव!

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भाई दूज भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के स्नेह और सम्मान का प्रतीक पर्व है। यह पर्व दो बार आता है—एक दीपावली के बाद और दूसरा होली के बाद। दोनों अवसरों पर इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, हालांकि क्षेत्रीय परंपराओं के अनुसार इसका स्वरूप भिन्न हो सकता है।

दीपावली के ठीक अगले दिन यम द्वितीया के रूप में मनाए जाने वाला भाई दूज पूरे भारत में विशेष महत्व रखता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक करके उनके सुख, समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती हैं। इसे यमराज और उनकी बहन यमुनाजी से जुड़ा माना जाता है, जिन्होंने इस दिन अपने भाई को प्रेमपूर्वक भोजन कराया था और यह वचन लिया था कि जो बहन इस दिन अपने भाई को तिलक करके भोजन कराएगी, उसके भाई को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। कुछ क्षेत्रों में होली के बाद द्वितीया तिथि को भी भाई दूज मनाया जाता है। इस दिन भी बहनें अपने भाइयों को तिलक कर उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह परंपरा विशेष रूप से उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में देखने को मिलती है।

जमरा बीज: जमाई राजा के सम्मान का पर्वः
होली के बाद द्वितीया तिथि को कुछ स्थानों पर ‘जमरा बीज’ पर्व मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से जमाई राजा के सम्मान में मनाया जाता है। इस दिन परिवार के दामाद का स्वागत सम्मानपूर्वक किया जाता है और उसे विशेष रूप से भोजन कराया जाता है। भाई दूज और जमरा बीज, दोनों ही पर्व परिवारिक प्रेम, सम्मान और आपसी सौहार्द्र के प्रतीक हैं, जो भारतीय संस्कृति की समृद्ध परंपराओं को दर्शाते हैं।

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