किसी मामले का गुण-दोष मीडिया में किए गए चित्रण से काफी अलग हो सकता है : सीजेआई

नई दिल्ली, मंगलवार, 05 नवंबर 2024। दिल्ली दंगों के मामले में जेल में बंद जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई में हो रही देरी के बारे में पूछे जाने पर प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी मामले का गुण-दोष उससे काफी अलग हो सकता है जैसा वह मीडिया में दिखाया जाता है। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि एक न्यायाधीश किसी मामले की सुनवाई करते समय अपने दिमाग का पूरा इस्तेमाल करता है और बिना किसी पक्षपात के, उसके गुण-दोष के आधार पर फैसला करता है। उन्होंने कहा कि मीडिया में एक विशेष मामला महत्वपूर्ण हो जाता है और फिर उस विशेष मामले पर अदालत की आलोचना की जाती है।
उन्होंने कहा, ‘‘प्रधान न्यायाधीश का पद संभालने के बाद मैंने जमानत के मामलों को प्राथमिकता देने का फैसला किया, क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा होता है। यह तय किया गया कि शीर्ष अदालत की कम से कम हर पीठ को जमानत के 10 मामलों की सुनवाई करनी चाहिए। नौ नवंबर 2022 से एक नवंबर 2024 के बीच उच्चतम न्यायालय में जमानत के 21,000 मामले दायर किए गए। इस अवधि के दौरान जमानत के 21,358 मामलों का निपटारा किया गया।’’
उन्होंने कहा कि इसी अवधि के दौरान धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत दायर 967 मामलों में से 901 का निपटारा किया गया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हाल के महीनों में दर्जनों राजनीतिक मामले ऐसे हैं जिनमें जमानत दी गयी है। इन मामलों में प्रमुख राजनीतिक लोग शामिल हैं। अक्सर मीडिया में किसी मामले के एक खास पहलू को पेश किया जाता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब कोई न्यायाधीश किसी मामले के रिकॉर्ड पर ध्यान देता है, तो जो सामने आता है, वह उस विशेष मामले के गुण-दोष के बारे में मीडिया में दिखाए गए चित्रण से बहुत अलग हो सकता है। न्यायाधीश संबंधित मामलों पर अपना ध्यान केंद्रित करता है और फिर मामले पर फैसला करता है।’’
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘अपनी बात करूं तो मैंने ए से लेकर जेड (अर्नब गोस्वामी से लेकर जुबैर) तक जमानत दी है।’’ उन्होंने कहा कि ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है’ के सिद्धांत का मुख्य रूप से पालन किया जाना चाहिए। देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि कुछ दबाव समूह हैं जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से अदालत पर दबाव डालकर अनुकूल फैसला हासिल करने की कोशिश करते हैं।
उन्होंने कहा कि इस समूह के बहुत से लोग कहते हैं कि अगर आप मेरे पक्ष में मामले का फैसला करते हैं तो आप स्वतंत्र हैं, अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप स्वतंत्र नहीं हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता का मतलब है कि एक न्यायाधीश को अपने विवेक के अनुसार मामले का फैसला करने में सक्षम होना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़़ ने कहा, ‘‘जब आप चुनावी बॉन्ड पर फैसला करते हैं, तो आप बहुत स्वतंत्र होते हैं, लेकिन अगर फैसला सरकार के पक्ष में जाता है, तो आप स्वतंत्र नहीं हैं। यह स्वतंत्रता की मेरी परिभाषा नहीं है ।’’


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