मासिक दुर्गाष्टमी के दिन इस तरह करें पूजन

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हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गा अष्टमी व्रत रखा जाता है और हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व है। कहा जाता है यह व्रत मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। इसी के साथ ऐसा भी कहा जाता है कि माँ उन लोगों को वरदान देती हैं जो इस दिन व्रत रखते हैं। इस समय नवंबर का महीना है और इस महीने में मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत आज यानि 30 नवंबर 2022, बुधवार को है। इस दिन श्रद्धालु दिनभर व्रत कर रात का व्रत का पारण करते हैं। अब हम आपको बताते हैं मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत पूजा की विधि और कथा।

मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा विधि- मासिक दुर्गाष्टमी के दिन मां दुर्गा का पूजन किया जाता है और कहते हैं कि मां दुर्गा यदि अपने भक्तों से प्रसन्न हो जाएं तो उनके जीवन में कभी कोई परेशानी नहीं आती। इस वजह से लोग मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए मासिक दुर्गा अष्टमी का व्रत करते हैं। ऐसे में इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें और फिर मंदिर की सफाई करें। मंदिर में स्थापित सभी देवी-देवताओं को गंगाजल से स्वच्छ करें। अब इसके बाद एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें और फिर उन्हें सिंदूर, अक्षत और लाल पुष्प अर्पित करें। वहीं इसके बाद फल व मिठाई चढ़ाएं और घी का दीपक जलाएं और फिर मां दुर्गा की आरती करें और दुर्गा चालीसा का भी पाठ अवश्य करें।

मासिक दुर्गाष्टमी की कथा- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में असुर दंभ को महिषासुर नाम के एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जिसके भीतर बचपन से ही अमर होने की प्रबल इच्छा थी। अपनी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए उसने अमर होने का वरदान हासिल करने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या आरंभ की। महिषासुर द्वारा की गई इस कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न भी हुए और उन्होंने वैसा ही किया जैसा महिषासुर चाहता था। ब्रह्मा जी ने खुश होकर उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा। ऐसे में महिषासुर, जो सिर्फ अमर होना चाहता था। उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुए खुद को अमर करने के लिए उन्हें बाध्य कर दिया।

लेकिन, ब्रह्मा जी ने महिषासुर को अमरता का वरदान देने की बात ये कहते हुए टाल दी कि जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म निश्चित है। इसलिए, अमरता जैसी किसी बात का कोई अस्तित्व नहीं होता है। जिसके बाद ब्रह्मा जी की बात सुनकर महिषासुर ने उनसे एक अन्य वरदान मानने की इच्छा जताते हुए कहा कि ठीक है स्वामी, अगर मृत्यु होना तय है तो मुझे ऐसा वरदान दे दीजिए कि मेरी मृत्यु किसी स्त्री के हाथ से ही हो। इसके अलावा अन्य कोई दैत्य, मानव या देवता, कोई भी मेरा वध ना कर पाए।

जिसके बाद ब्रह्मा जी ने महिषासुर को दूसरा वरदान दे दिया। ब्रह्मा जी द्वारा वरदान प्राप्त करते ही महिषासुर अहंकार से अंधा हो गया और इसके साथ ही उसका अन्याय भी बढ़ गया। मौत के भय से मुक्त होकर उसने अपनी सेना के साथ पृथ्वी लोक पर आक्रमण कर दिया। जिससे धरती चारों तरफ से त्राहिमाम-त्राहिमाम होने लगी। उसके बल के आगे समस्त जीवों और प्राणियों को नतमस्तक होना ही पड़ा। जिसके बाद पृथ्वी और पाताल को अपने अधीन करने के बाद अहंकारी महिषासुर ने इन्द्रलोक पर भी आक्रमण कर दिया। जिसमें उन्होंने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर भी कब्ज़ा कर लिया। 

महिषासुर से परेशान होकर सभी देवी-देवता, त्रिदेवों के पास सहायता मांगने के लिए पहुंचे। इस पर विष्णु जी ने उसके अंत के लिए देवी शक्ति के निर्णाम की सलाह दी। जिसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर देवी शक्ति को सहायता के लिए पुकारा और इस पुकार को सुनकर सभी देवताओं के शरीर में से निकले तेज ने एक अत्यंत खूबसूरत सुंदरी का निर्माण किया। उसी तेज से निकली मां आदिशक्ति जिसके रूप और तेज से सभी देवता भी आश्चर्यचकित हो गए।

त्रिदेवों की मदद से निर्मित हुई देवी दुर्गा को हिमवान ने सवारी के लिए सिंह दिया और इसी प्रकार वहां मौजूद सभी देवताओं ने भी मां को अपने एक-एक अस्त्र-शस्त्र सौंपे और इस तरह स्वर्ग में देवी दुर्गा को इस समस्या हेतु तैयार किया गया। माना जाता है कि देवी का अत्यंत सुन्दर रूप देखकर महिषासुर उनके प्रति बहुत आकर्षित होने लगा और उसने अपने एक दूत के जरिए देवी के पास विवाह का प्रस्ताव तक पहुंचाया। अहंकारी महिषासुर की इस ओच्छी हरकत ने देवी भगवती को अत्याधिक क्रोधित कर दिया। जिसके बाद से ही मां ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। 

मां दुर्गा से युद्ध की ललकार सुनकर ब्रह्मा जी से मिले वरदान के अहंकार में अंधा महिषासुर उनसें युद्ध करने के लिए तैयार भी हो गया। इस युद्ध में एक-एक करके महिषासुर की संपूर्ण सेना का मां दुर्गा ने सर्वनाश कर दिया। इस दौरान ये भी माना जाता है कि ये युद्ध पूरे नौ दिनों तक चला जिसके दौरान असुरों के सम्राट महिषासुर ने विभिन्न रूप धककर देवी को छलने की कई बार कोशिश की। लेकिन, उसकी सभी कोशिश आखिरकार नाकाम रही और देवी भगवती ने अपने चक्र से इस युद्ध में महिषासुर का सिर काटते हुए उसका वध कर दिया। अंत में इस तरह देवी भगवती के हाथों महिषासुर की मृत्यु संभव हो पाई। माना जाता है कि जिस दिन मां भगवती ने स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक को महिषासुर के पापों से मुक्ति दिलाई उस दिन से ही दुर्गा अष्टमी का पर्व प्रारम्भ हुआ।

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