डिमासा संगठनों ने राष्ट्रपति मुर्मू से फिल्म ‘सेमखोर’ का प्रदर्शन रोकने का अनुरोध किया

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हाफलोंग, शुक्रवार, 30 सितंबर 2022। असम के डिमासा संगठनों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म ‘सेमखोर’ में जनजाति समुदाय को कथित तौर पर गलत तरीके से दर्शाने के मामले में हस्तक्षेप करते हुए उसके प्रदर्शन पर रोक लगाने का अनुरोध किया है। डिमासा संगठनों ने फिल्म के विरोध में दीमा हसाओ जिले के मुख्यालय हाफलोंग में एक विरोध मार्च भी निकाला है। वर्ष 2021 में प्रदर्शित ‘समेखोर’ डिमासा भाषा में निर्मित पहली फिल्म है। इसे 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में रजत कमल से नवाजा गया था। ‘समेखोर’ की सह-निर्माता और फिल्म में मुख्य किरदार निभाने वाली बरुआ ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में ‘स्पेशल ज्यूरी मेंशन’ अवॉर्ड जीता था। वह असम के सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री पीयूष हजारिका की पत्नी हैं। राष्ट्रपति मुर्मू को बृहस्पतिवार को सौंपे गए एक ज्ञापन में डिमासा संगठनों ने दावा किया कि ‘समेखोर’ में डिमासा जनजाति समुदाय से जुड़े लोगों के रीति-रिवाजों, परंपराओं और रहन-सहन को गलत तरीके से दर्शाया गया है।

डिमासा संगठनों ने मीडिया में फिल्म के निर्देशक एमी बरुआ के संबंध में प्रकाशित सभी खबरों को वापस लेने के लिए भी राष्ट्रपति के हस्तक्षेप की मांग की। उन्होंने हाफलोंग में विरोध मार्च निकाला और दीमा हसाओ जिला प्रशासन को भी एक ज्ञापन सौंपा। प्रदर्शनकारियों ने ‘सेमखोर’ में डिमासा समुदाय के रीति-रिवाजों, परंपराओं और आजीविका के साधनों को गलत तरीके से पेश करने के लिए बरुआ से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने की मांग की। उन्होंने अपने ज्ञापन में कहा है, “हम समुदाय की पारंपरिक नैतिकता को बदनाम करने को लेकर डिमासा समाज को मुआवजा दिए जाने की मांग करते हैं।”

ज्ञापन में दावा किया गया है कि ‘समेखोर’ की शूटिंग के दौरान एक बच्ची की ठंड से मौत हो गई थी, क्योंकि बरुआ ने कानूनी औपचारिकताओं का पालन नहीं किया था। डिमासा असम और नगालैंड में रहने वाला एक जनजाति समुदाय है। पांच डिमासा संगठनों द्वारा सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है, “फिल्म में डिमासा समुदाय से जुड़े लोगों को सड़क ढांचे, स्कूलों और चिकित्सा प्रतिष्ठानों जैसे किसी भी तरह के आधुनिक विकास के खिलाफ दर्शाया गया है।” इसमें कहा गया है, “फिल्म में हमारे समुदाय की परंपरा को इस कदर गलत तरीके से पेश किया गया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि डिमासा समाज में कन्या भ्रूण हत्या की जाती है, जो पूरी तरह से गलत और झूठ है। डिमासा समाज में अनादि काल से इस तरह की कुप्रथाएं कभी अस्तित्व में नहीं रही हैं।”

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