गाय कैसे और क्यों करती है वास्तु दोषों का निवारण
वास्तु के अनुसार अगर भवन, घर का निर्माण करना हो यदि वहां पर बछड़े वाली गाय को लाकर बांधा जाए तो वहां संभावित वास्तु दोषों का स्वत: निवारण हो जाता है। वह कार्य निर्विघ्न पूरा होता है और समापन तक आर्थिक बाधाएं नहीं आतीं।
गाय के रूप में पृथ्वी की करुण पुकार और विष्णु से अवतार के लिए निवेदन के प्रसंग बहुत प्रसिद्ध हैं। ‘समरांगण सूत्रधार’ जैसा प्रसिद्ध वृहद् वास्तु ग्रंथ गो रूप में पृथ्वी-ब्रह्दि के समागम-संवाद से ही आरंभ होता है। वास्तुग्रंथ ‘मयमतम्’ में कहा गया है कि भवन निर्माण का शुभारंभ करने से पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लाकर बांधना चाहिए जो सवत्सा या बछड़े वाली हो।
शास्त्रों में लिखा हैं की जब नवजात बछड़े को जब गाय दुलारकर चाटती है तो उसका फेन भूमि पर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वहां होने वाले समस्त दोषों का निवारण हो जाता है। यही मान्यता वास्तुप्रदीप, अपराजितपृच्छा आदि में भी आई है। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठकर निर्भयतापूर्वक सांस लेती है, उस स्थान के सारे पापों को खींच लेती है-
निविष्टं गोकुलं यत्र श्वांस मुंचति निर्भयम्।
विराजयति तं देशं पापं चास्याप कर्षति॥
यह भी कहा गया है कि जिस घर में गाय की सेवा हो, वहां पुत्र-पौत्र, धन, विद्या, सुखादि जो भी चाहिए, मिल सकता है। यही मान्यता अत्रिसंहिता में भी आई है। अत्रि ने तो यह भी कहा है कि जिस घर में सवत्सा धेनु नहीं हो, उसका मंगल-मांगल्य कैसे होगा?
गाय का घर में पालन करना बहुत लाभकारी है। ऐसे घरों में सर्वबाधाओं और विघ्नों का निवारण हो जाता है। जिस घर में गाय रहती है उसमें रहने वाले बच्चों में भय नहीं रहता। विष्णु पुराण में कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण पूतना के दुग्धपान से डर गए तो नंद दंपती ने गाय की पूंछ घुमाकर उनकी नजर उतारी और भय का निवारण किया। सवत्सा गाय के शकुन लेकर जाने से कार्य सिद्ध होता है।
पद्मपुराण, और कूर्मपुराण में कहा गया है कि कभी गाय को लांघकर नहीं जाना चाहिए। किसी भी साक्षात्कार, उच्च अधिकारी से भेंट आदि के लिए जाते समय गाय के रंभाने की ध्वनि कान में पड़ना शुभ है। संतान लाभ के लिए घर में गाय की सेवा अच्छा उपाय कहा गया है। शिवपुराण व स्कंदपुराण में कहा गया है कि गो सेवा और गोदान से यम का भय नहीं रहता। गाय के पांव की धूली का भी अपना महत्व है। यह पाप विनाशक है, ऐसा गरुड़पुराण और पद्मपुराण का मत है।
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