मंत्री प्रियांक खरगे ने आरएसएस के चंदा लेने के तरीके पर सवाल उठाए

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बेंगलुरु, सोमवार, 10 नवंबर 2025। कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खरगे ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा चंदा प्राप्त करने के तरीके पर सोमवार को सवाल उठाया और उसके वित्तपोषण के तरीकों पर स्पष्टीकरण मांगा। प्रियांक खरगे ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक ‘पोस्ट’ के जरिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त की कि संगठन पूरी तरह से अपने स्वयंसेवकों के योगदान से संचालित होता है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के पुत्र ने कहा, ‘‘भागवत ने कहा है कि आरएसएस अपने स्वयंसेवकों द्वारा दिए गए चंदे के माध्यम से काम करता है। हालांकि, इस दावे को लेकर कई वाजिब सवाल उठते हैं।’’

उन्होंने पूछा कि ये स्वयंसेवक कौन हैं और उनकी पहचान कैसे की जाती है, वे कितना चंदा देते हैं एवं इसकी प्रकृति क्या है और किन माध्यमों से धन एकत्र किया जाता है। मंत्री ने कहा, ‘‘अगर आरएसएस पारदर्शी तरीके से काम करता है, तो संगठन को उसकी पंजीकृत पहचान के तहत सीधे चंदा क्यों नहीं दिया जाता?’’ उन्होंने जानना चाहा कि औपचारिक रूप से पंजीकृत संस्था न होते हुए भी आरएसएस ने अपना वित्तीय और संगठनात्मक ढांचा कैसे कायम रखा।

मंत्री ने यह भी पूछा कि पूर्णकालिक प्रचारकों को कौन वेतन देता है और संगठन के नियमित संचालन संबंधी खर्चों को कौन पूरा करता है तथा बड़े पैमाने के आयोजनों, अभियानों एवं संपर्क गतिविधियों का वित्तपोषण कैसे होता है। उन्होंने स्वयंसेवकों द्वारा ‘‘स्थानीय कार्यालयों’’ से गणवेश या सामग्री खरीदे जाने का मुद्दा उठाया और पूछा कि धन का हिसाब कहां रखा जाता है और स्थानीय कार्यालयों एवं अन्य बुनियादी ढांचे के रखरखाव का खर्च कौन उठाता है।

मंत्री ने कहा कि ये प्रश्न पारदर्शिता और जवाबदेही के मूलभूत मुद्दे को रेखांकित करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘अपनी व्यापक राष्ट्रीय उपस्थिति और प्रभाव के बावजूद आरएसएस अब भी पंजीकृत क्यों नहीं है?’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब भारत में हर धार्मिक या धर्मार्थ संस्था को वित्तीय पारदर्शिता बनाए रखना जरूरी है, तो आरएसएस के लिए ऐसी जवाबदेही व्यवस्था न होने का क्या औचित्य है? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा था कि उनके संगठन को व्यक्तियों के एक समूह के रूप में मान्यता प्राप्त है। उन्होंने कहा था, ‘‘‘आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी, तो क्या आप उम्मीद करते हैं कि हम ब्रिटिश सरकार के पास पंजीकरण कराते?’’ उन्होंने कहा था कि आजादी के बाद भारत सरकार ने पंजीकरण अनिवार्य नहीं बनाया।

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