विधानसभा उपचुनावों में आयोग का ईसीआईनेट चालू , परिणाम के 72 घंटे के अंदर जारी हुए इंडेक्स कार्ड

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नई दिल्ली, बुधवार, 25 जून 2025। चुनाव आयोग ने केरल, गुजरात, पंजाब और पश्चिम बंगाल की पांच विधानसभा सीटों पर हाल ही में संपन्न हुए उपचुनावों में अपने नए एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म ईसीआईनेट का परिचालन सफलता पूर्वक शुरू कर दिया है और यह आने वाले दिनों में पूरी तरह चालू होगा। यह जानकारी आयोग की बुधवार को एक विज्ञप्ति में दी गयी। आयोग ने इस साल चार मई को ईसीआईनेट नामक से एक नए वन-स्टॉप प्लेटफॉर्म के विकास की घोषणा की थी, जिसमें विभिन्न हितधारकों के लिए आयोग द्वारा परिचालित 40 से अधिक मौजूदा मोबाइल और वेब एप्लिकेशन एकीकृत किए गए हैं।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि हाल के उप चुनावों में ईसीआईईनेट के कुछ मॉड्यूल का सफल कार्यान्वयन देखा गया, जो आने वाले हफ्तों में पूरी तरह से चालू हो जाएगा। ईसीआईईनेट मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के नेतृत्व में चुनाव आयुक्तों डॉ. सुखबीर सिंह संधू और डॉ. विवेक जोशी के साथ मिलकर मतदाताओं और अन्य हितधारकों के लाभ के लिए चुनाव संबंधी जानकारी का समय पर और अद्यतन प्रकटीकरण करने के लिए आयोग द्वारा की गई विभिन्न पहलों में से एक है। 

आयोग का कहना है कि उपचुनावों के दौरान पीठासीन अधिकारियों (पीआरओ) ने सीधे ईसीआईएनईटी पर मतदान की गति (वीटीआर) के रुझान अपलोड किए जो पहले हाथ से भर कर जारी किए जाते थे। इससे सूचनाओं का त्वरित आदान-प्रदान हुआ, पारदर्शिता बढ़ी और वीटीआर रुझान प्रकाशित करने में लगने वाले समय में उल्लेखनीय कमी आई। इन उप चुनावों में ईसीआईएनईटी के माध्यम से पीआरओ अपने-अपने मतदान केंद्रों को छोड़ने से पहले अंतिम वीटीआर आंकड़े अपलोड किए जिसके मतदान के रुझान लोगों तक बहुत तेजी से पहुंचाए जा सके। 

आयोग का कहना है कि ईसीआईएनईटी के चालू होने से इंडेक्स कार्ड का तेजी से प्रकाशन सम्भव हो सका और ये कार्ड परिणाम घोषित होने के 72 घंटों के भीतर उपलब्ध करा दिए गए थे। नई प्रणाली के तहत, इंडेक्स कार्ड में अधिकांश डेटा फ़ील्ड ईसीआईईनेट इनपुट का उपयोग करके स्वतः भरे जाते हैं। इससे पहले, इंडेक्स कार्ड के प्रकाशन में कई दिन, सप्ताह या महीने लग जाते थे क्योंकि डेटा अधिकारियों द्वारा मैन्युअल रूप से भरा और सत्यापित किया जाता था। इंडेक्स कार्ड एक गैर-सांविधिक, चुनाव के बाद का सांख्यिकीय सूचना प्रारूप है, जिसे 1980 के दशक के अंत में आयोग द्वारा शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं, पत्रकारों और आम जनता सहित सभी हितधारकों के लिए निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर चुनाव-संबंधी डेटा की उपलब्धता को बढ़ावा देने के लिए एक स्व-प्रेरित पहल के रूप में विकसित किया गया था।

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