मुख्यमंत्री केजरीवाल की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को सुनाएगा फैसला

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नई दिल्ली, गुरुवार, 12 सितम्बर 2024। उच्चतम न्यायालय दिल्ली आबकारी नीति कथित घोटाले से संबंधित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के मुकदमे में तिहाड़ जेल में बंद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत की मांग और इसी मामले में गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिकाओं पर शुक्रवार 13 सितंबर को अपना फैसला सुनाएगा। शीर्ष अदालत की बेवसाइट के मुताबिक न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ अपना फैसला सुनाएगी। याचिकाकर्ता केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और सीबीआई की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू की घंटों दलीलें के बाद पीठ ने पांच सितंबर को सुनवाई पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

आम आदमी पार्टी के प्रमुख श्री केजरीवाल ने सीबीआई मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से 05 अगस्त को अपनी याचिकाएं ठुकरा दिए जाने के बाद शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 (जो विवाद के बाद रद्द कर दी गई) के कथित और अनियमितताओं के मामले में केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 21 मार्च और सीबीआई में 26 जून 2024 को आरोपी मुख्यमंत्री केजरीवाल को गिरफ्तार किया था। सीबीआई की गिरफ्तारी के समय वह ईडी के मुकदमे में न्यायिक हिरासत में थे।

सीबीआई ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मुकदमे में मार्च से न्यायिक हिरासत में बंद आरोपी मुख्यमंत्री केजरीवाल को विशेष अदालत की अनुमति के बाद 25 जून को पूछताछ और फिर 26 जून को गिरफ्तार किया था। शीर्ष अदालत ने आबकारी नीति कथित घोटाले से संबंधित धन शोधन के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से दर्ज मुकदमे में केजरीवाल को 12 जुलाई को अंतरिम जमानत दे दी थी। यदि सीबीआई की ओर से जून में मुकदमा दर्ज नहीं किया गया होता तो वह जेल से रिहा कर दिए गए होते।

शीर्ष अदालत ने इससे पहले लोकसभा चुनाव के दौरान भी उन्हें अंतरिम जमानत दी थी। आबकारी नीति बनाने और उसके कार्यान्वयन में की गई कथित अनियमितताओं के आरोप के आधार पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 17 अगस्त 2022 को एक आपराधिक मुकदमा दर्ज किया था। इसी आधार पर ईडी ने 22 अगस्त 2022 को धनशोधन का मामला दर्ज किया था। शुरू में मुख्यमंत्री केजरीवाल का नाम आरोपियों में नहीं था। सीबीआई मामले में शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के दौरान केंद्रीय जांच एजेंसी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने मुख्यमंत्री केजरीवाल को जमानत दिए जाने की दलीलों का पुरजोर विरोध करते हुए कहा था कि अधिनस्थ अदालत को दरकिनार करने की अनुमति केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दी जा सकती है।

इस पर श्री केजरीवाल पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सिंघवी ने दलील दी थी कि सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत आरोपी को नोटिस जारी करने के संबंध में वर्तमान याचिका में उठाए गए आधारों पर हिरासत के दौरान बहस की गई थी। इसके बाद विशेष अदालत ने उसे खारिज कर दिया था। इसलिए याचिकाकर्ता को फिर से उसी मुद्दे पर वहां बहस करने के लिए वापस भेजना न्यायोचित नहीं होगा। पीठ के समक्ष गुरुवार पांच सितंबर 2024 को श्री सिंघवी ने कहा, "शायद यह एकमात्र ऐसा मामला है, जिसमें मुझे (केजरीवाल) इस अदालत से सख्त धन शोधन रोकथाम अधिनियम के तहत दो रिहाई आदेश मिले।उच्च न्यायालय से एक और विस्तृत आदेश मिला। फिर सीबीआई द्वारा पहले से तय गिरफ्तारी हुई।

शीर्ष अदालत को श्री सिंघवी ने यह भी बताया कि केजरीवाल का नाम 2022 में दर्ज मुकदमे में नहीं था और उन्हें इस साल 2024 जून में गिरफ्तार किया गया था।उन्होंने कहा, "तीन अदालती आदेश मेरे पक्ष में हैं। यह एक पहले से तय की गई गिरफ्तारी है, ताकि उन्हें (मुख्यमंत्री) जेल में रखा जा सके। वरिष्ठ अधिवक्ता ने मुख्यमंत्री केजरीवाल का पक्ष रखते हुए आगे कहा, "सबूतों के साथ छेड़छाड़ का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि लाखों दस्तावेज हैं, जिनमें से कई तो डिजिटल हैं। उनके मुवक्किल न्यायिक हिरासत में रहते हुए गवाहों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं और इस मामले में पांच आरोप पत्र भी दाखिल किए गए हैं।

उन्होंने दिल्ली आबकारी नीति मामले से संबंधित अन्य आरोपियों - दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, सांसद संजय सिंह और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की विधान पार्षद के कविता के जमानत आदेशों का हवाला दिया। शीर्ष अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया था। ये नेता जेल से रिहा कर दिए गए हैं। सिंघवी ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 41ए को 2010 में गिरफ्तारियों को विनियमित करने के लिए पेश किया गया था और इसका उद्देश्य मनमानी गिरफ्तारियों को रोकना और यह सुनिश्चित करना था कि कानून प्रवर्तन अधिकारी बिना किसी वैध आधार के किसी को गिरफ्तार न कर सकें।

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