सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव, बालकृष्ण को विज्ञापन देकर माफी मांगने का दिया निर्देश
नई दिल्ली, मंगलवार, 16 अप्रैल 2024। उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न बीमारियों के इलाज से संबंधित पतंजलि आयुर्वेद के 'भ्रामक' विज्ञापनों और एलोपैथिक चिकित्सा के 'खिलाफ' बयान देने से जुड़े अदालती अवमानना के मामले में मंगलवार को योग गुरु बाबा रामदेव और उनके शिष्य पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण के अदालत में पेश होकर बिना शर्त माफी की मांग का संज्ञान लेते हुए उन्हें एक सप्ताह के भीतर विज्ञापन के जरिए माफीनामा प्रकाशित करवाने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने बाबा रामदेव और बालकृष्ण की ओर से माफी मांगने और माफीनामा प्रकाशित करने के लिए राजी होने के बाद स्पष्ट किया कि अभी इस मामले में उन्हें 'छूट' नहीं दी गयी है। पीठ ने दोनों की ओर से माफी मांगने के बाद कहा ''हमने अभी तक यह तय नहीं किया है कि आपकी माफी स्वीकार की जाये या नहीं।
पीठ ने कहा कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से दायर इस याचिका पर अगली सुनवाई 23 अप्रैल को होगी। शीर्ष अदालत ने इससे पहले दो बार (दो और 10 अप्रैल) को उनके माफीनामे को सही नहीं पाया और उन्हें खारिज कर दिया था। शीर्ष अदालत ने 10 अप्रैल को माफीनामा अस्वीकार करते हुए कहा था, ''हम इस हलफनामे को स्वीकार करने से इनकार करते हैं। यह (अवमानना) जानबूझकर किया गया था। उन्हें (बाबा रामदेव और बालकृष्ण ) इसके परिणाम भुगतने होंगे। हम इस मामले में उदार नहीं बनना चाहते।
पीठ ने अवमाननाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और बलबीर सिंह से कहा था कि वे (बाबा रामदेव और बालकृष्ण) अदालती कार्यवाही को बहुत हल्के में ले रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा था कि रामदेव और बालकृष्ण ने विदेश यात्रा के झूठे दावे करके अदालत के समक्ष व्यक्तिगत पेशी से बचने की कोशिश की। पीठ ने कहा था कि 30 मार्च को दिए गए हलफनामे में 31 मार्च के हवाई यात्रा के टिकट संलग्न किए गए और जब हलफनामा दिया गया तो टिकट मौजूद नहीं थे।
पीठ ने पतंजलि पर इस मामले (भ्रामक विज्ञापन) में उत्तराखंड लाइसेंसिंग प्राधिकरण की निष्क्रियता और केंद्र सरकार द्वारा जारी पत्रों के बावजूद दिव्य फार्मेसी के खिलाफ कोई कार्रवाई करने में विफलता पर भी अपनी आपत्ति दोहराई थी। पीठ ने कहा था, ''हम यह जानकर आश्चर्यचकित हैं कि फाइलों को आगे बढ़ाने के अलावा उन्होंने कुछ भी नहीं किया गया। इससे यह स्पष्ट रूप से जिम्मेदारी और मामले को लटकाने के प्रयास का पता चलता है। इन संबंधित वर्षों में (उत्तराखंड) राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण गहरी नींद में सोता रहा।
शीर्ष अदालत ने कहा था, ''यह जानबूझकर किया गया और लाइसेंसिंग प्राधिकारी की ओर से पूरी तरह से मूर्खतापूर्ण कार्य है। पीठ ने आगे कहा था, ''हम अवमानना नोटिस जारी करने के इच्छुक हैं, लेकिन फिलहाल इससे बच रहे हैं। उन्हें चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने 10 अप्रैल को रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ अवमानना कार्रवाई से संबंधित मामले की सुनवाई 16 अप्रैल तक की थी, जबकि उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के खिलाफ 30 अप्रैल को सुनवाई करेगी।
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